गौकृति गौमय मिश्रित कागज
भारतीय सनातन धर्म में गौमाता का महत्व प्राचीन काल से ही रहा हैं। गौमाता को समस्त धार्मिक कार्यों में सम्मिलित कर पूजा जाता रहा है। गौमाता से मिलने वाले पदार्थों में दूध, दही, घी के अलावा गौमूत्र व गौबर भी शामिल है। गौमाता के दूध, दही का उपयोग भारत वर्ष में बहुतायात में होता रहा है परन्तु जब गाय दूध देने के लायक नहीं रहती है तब उसको उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता है इसी उपेक्षित व्यवहार के कारण उनको मरने के लिये छोड़ दिया जाता है।
गौमाताओं की यही दशा देखकर हमने गौमाता के गौबर व गौमूत्र का इस्तेमाल कर गौमय मिश्रित कागज का निर्माण (आविष्कार) किया है। जिससे गौमाता का दूध के अलावा उनके गौबर व गौमूत्र की वजह से भी पालन पोषण अच्छे से किया जा सकेगा। वर्तमान में एक टन मील पेपर के लिये लगभग 17 पेड़ों को काटा जाता है और प्रतिदिन लाखों पेड़ों की बली दी जा रही है। जिससे पर्यावरण के लिये खतरा पैदा होता जा रहा है, इसी विषय ओर गौमाता की देश में स्थिति देख-कर हमने इस पर लगभग 4-5 साल से मेहनत कर गौमय मिश्रित कागज का निर्माण किया। आज हमारे कागज को सम्पूर्ण भारत वर्ष में लोगों द्वारा काफी सराहा व पसंद किया जा रहा है।
हमने इस आविष्कार से ना सिर्फ कागज बनाया हैं, अपितु भविष्य को ध्यान में रखते हुये हमने पर्यावरण रक्षार्थ कागज में वनस्पतियों, फूलों, सब्जियों के बीज भी कई कागज में डाले हैं जिससे इसको काम में लेने के बाद जमीन पर फैंकने पर अनेक प्रकार की वनस्पतियां उग जायेगी और हमारा कागज जमीन पर फैंकने पर खाद का भी काम करेगा।
हमारे इस आविष्कार से कागज के निर्माण कार्य मे गाँवो के बेरोजगारों को प्रशिक्षण देकर उनको इस कागज निर्माण में लगा रोजगार का नया अवसर भी प्रदान किया जा सकता है। हमारा यह आविष्कार जहाँ दूध ना देने वाली गौमाता के जीवन की रक्षा करेगा वही पेपर बनाने के लिये पेड़ो को कटने से भी बचायेगा। हम गौमाता का गीला गोबर लगभग 10 रूपये प्रति किलो के दाम से खरीदते है।
हम इस कार्य को राष्ट्रीय व अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर फैलाकर हमारे देश के बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध कराने के साथ ही गौमाता को स्वावलम्बी व पर्यावरण सरंक्षण की ओर नई दिशा प्रदान कर सकते हैं।
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